तुमने हमने जो सपना बुना था
बिखर वो रहा है कहीं
रातों के तारे जो बुन कर दिए थे बिखर वो रहे हैं कहीं
ये दोनों के हालात हैं कि कोई भी खुश तो नहीं
चलो कर ले वादा फिर हम
की मिलना कहीं भी नहीं
मिलना कहीं भी नहीं
मिलना कहीं भी नहीं
मिलना कहीं भी नहीं
देखो न ये क्या होगया
हम क्यों ही फिर बिछड़ते गए
कुछ पल की थी दूरी सही
अरसे तक थी ज़रूरी नहीं
आँसू पलकों में कैसे भला
थामकर रहेंगे तू ये बता
धुंदली करके यादों को क्या
रेह लोगी ऐसे मुझसे खफा
लिख कर मुझको
हथेली पे अपनी
फिरसे मिटा दोगे क्या
बिखरे हुए वो
रातों का तारे
रखे हैं आलमारी में क्या
ये दोनों के हालात है कि कोई भी खुश तो नहीं
चलो कर ले वादा फिर हम
की मिलना कहीं भी नहीं
मिलना कहीं भी नहीं
मिलना कहीं भी नहीं
मिलना कहीं भी नहीं
Written by: Lyrics Licensed & Provided by LyricFind
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