Musafir Ko

समीर राहत, Vidhya Gopal

सांझ के सूरज को, डोर कहा जाना है चाँद को बहला के, भोर को आ जाना है मुसाफिर को घर हे आना है, भटक के माना मुसाफिर को घर हे आना है मुसाफिर को घर हे आना है भटक के माना मुसाफिर को घर हे आना है कोई सब शोहराते हाथ में धार जाए तेरा बोल-बाला हो, तू हे तू नज़र आए कोई सारी दौलते तेरे नाम कर जाए भरेगा कही ना मॅन, चाहे तू जिधर जाए तेरे आयेज पीछे जो, आज ये ज़माना है एक अफ़साना है, ये तो सब बहाना है मुसाफिर को घर हे आना है, भटक के माना मुसाफिर को घर हे आना है मुसाफिर को घर हे आना है, भटक के माना मुसाफिर को घर हे आना है ज़िंदगी ये जादू है, या कोई छलावा है खाली खाली रस्मो का, खॉकला सा दावा है कारवा छूटेंगे, राहेई थम जाएँगी रूह ये हक़ीक़त है, जिस्म दिखावा है जिस्म दिखावा है जिस्म दिखावा है तेरी जो ज़मीने है, तेरा जो ख़ज़ाना है ये जो कारखाना है, यही छ्छूट जाना है मुसाफिर को घर हे आना है, भटक के माना मुसाफिर को घर हे आना है मुसाफिर को घर हे आना है, भटक के माना मुसाफिर को घर हे आना है किसिको मनाना है, कभी रूठ जाना है कोई ज़िद्द करनी है, और तक जाना है सांझ के सूरज को, डोर कहा जाना है चाँद को बहला के, भोर को आ जाना है मुसाफिर को घर हे आना है मुसाफिर को घर हे आना है, भटक के माना मंजर ये बदल ही जाना हे मुसाफिर को घर हे आना है, भटक के माना मुसाफिर को घर हे आना है

Written by: Lyrics Licensed & Provided by LyricFind

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