Woh Subha Kabhi To Ayegi

अपर्ण मयेकर, कमलेश अवस्थी

वो सुबह कभी तो आयेगी वो सुबह कभी तो आयेगी वो सुबह कभी तो आयेगी वो सुबह कभी तो आयेगी इन काली सदियों के सर से जब रात का आंचल ढलकेगा आ आ आ आ आ आ आ आ जब दुख के बादल पिघलेंगे जब सुख का सागर छलकेगा आ आ आ आ आ आ आ आ जब अम्बर झूम के नाचेगा जब धरती नगमें गायेगी वो सुबह कभी तो आयेगी(वो सुबह कभी तो आयेगी) वो सुबह कभी तो आयेगी(वो सुबह कभी तो आयेगी) ह्म ह्म ह्म आ आ आ आ आ जिस सुबह की खातिर जुग जुग से हम सब मर मर कर जीते हैं आ आ आ आ आ आ आ आ जिस सुबह के अमृत की धुन में हम जहर के प्याले पीते हैं आ आ आ आ आ आ आ आ इन भूखी प्यासी रूहों पर इक दिन तो करम फरमाएगी वो सुबह कभी तो आयेगी(वो सुबह कभी तो आयेगी) वो सुबह कभी तो आयेगी(वो सुबह कभी तो आयेगी) आ आ ह्म ह्म आ आ आ आ माना कि कभी तेरे मेरे अरमानो की कीमत कुछ भी नहीं ह्म ह्म ह्म मिट्टी का भी है कुछ मोल मगर इन्सानों की कीमत कुछ भी नहीं आ आ आ आ आ आ आ आ इन्सानों की इज्जत जब झूठे सिक्कों में न तोली जायेगी(आ आ आ आ) वो सुबह कभी तो आयेगी(वो सुबह कभी तो आयेगी) वो सुबह कभी तो आयेगी(वो सुबह कभी तो आयेगी) आ आ ह्म ह्म आ आ आ आ मजबूर बुढ़ापा जब सूनी राहों की धूल न फांकेगा ह्म ह्म ह्म मासूम लड़कपन जब गंदी गलियों भीख न मांगेगा आ आ आ आ आ आ आ आ ह़क मांगने वालों को जिस दिन सूली न दिखाई जायेगी(आ आ आ आ आ) वो सुबह कभी तो आयेगी(वो सुबह कभी तो आयेगी) वो सुबह कभी तो आयेगी(वो सुबह कभी तो आयेगी) वो सुबह कभी तो आयेगी(वो सुबह कभी तो आयेगी) वो सुबह कभी तो आयेगी(वो सुबह कभी तो आयेगी) वो सुबह कभी तो आयेगी(वो सुबह कभी तो आयेगी)

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