Woh Jo Shair Tha

Bhupinder Singh

वो जो शायर था चुप सा रहता था बहकी बहकी सी बाते करता था आँखें कानो पे रखके सुनता था यूँही खामोश रूह की आवाज़े वो जो शायर था जमा करता था चंदा के साए घीली घीली सी नूर की बूंदे ओख में भर के खड़ खड़ा था रूखे रूखे से रात के पत्ते वक़्त के इस घनेरे जुंगल में कच्चे पक्के से लम्हे चुनता था वो जो शायर था हा वहीं वो अजीब सा शायर रात के उठाके कोहनिओ के बल चाँद की खड़ी चूमा करता था चाँद से गिरके मर गया हैं वो लोग कहते हैं खुदखुशी की हैं लोग कहते हैं खुदखुशी की हैं लोग कहते हैं खुदखुशी की हैं वो जो शायर था आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ वो जो शायर था वो जो शायर था वो जो शायर था

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