Pagal Parindey
Sunidhi Chauhan, Bishakh Jyoti
आ आ आ आ आ आ
ना ज़मीन मिली ना फलक मिला
है सफ़र में अँधा परिंदा
जिस राह की मंज़िल नही
वही खो गया होके गुमराह
ना ज़मीन मिली ना फलक मिला
है सफ़र में अँधा परिंदा
जिस राह की मंज़िल नही
वही खो गया होके गुमराह
हवा गाओं की अब भी ढूँढ रही
बेबस आँखें ये धुंधली होती रही
ना बोला कुछ ना कुछ कहा
कोई जाता है क्या इस तरह
ना ज़मीन मिली ना फलक मिला
है सफ़र में अँधा परिंदा
जिस राह की मंज़िल नही
वही खो गया होके गुमराह
ज़िंदान को उड़ान समझ बैठा
एक बार भी मुड़ के ना देखा
हरे पेड़ों की शाख़ें छोड़ आया
मासूम को किसने बहकाया
हरियाली वो यादों में आती रहीं
राहें तक़रीरें रोज़ सुनाती रहीं
ना दुआ मिली, ना मिला ख़ुदा
हुआ क़ैद पागल परिंदा
ना ज़मीं मिली, ना फ़लक मिला
है सफ़र में अंधा परिंदा
जिस राह की मंज़िल नहीं
वहीं खो गया होके गुमराह
ज़हन में किसने ज़हर डाला
रूह पे कहर कर डाला
झूठी तस्वीर दिखा के मज़हब की
कमबख़्त इंसाँ बदल डाला
दोज़ख़ की तरफ़ हाय नादान चली
जन्नत गाँव में थी अच्छी-भली
आँखें खुलीं तो सब दिखा
गुमनाम है ये परिंदा
ना ज़मीं मिली, ना फ़लक मिला
है सफ़र में अंधा परिंदा
जिस राह की मंज़िल नहीं
वहीं खो गया होके गुमराह
आ आ आ आ आ आ आ
Written by: Lyrics Licensed & Provided by LyricFind
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