Yehi Raat Antim Yehi Raat Bhaari

Ravindra Jain, Chandrani Mukherjee, Arun Dangle

यही रात अंतिम, यही रात भारी बस एक रात की अब कहानी है सारी यही रात अंतिम, यही रात भारी नहीं बंधु-बांधव ना कोई सहायक अकेला है लंका में लंका का नायक सभी रत्न बहुमूल्य रण में गँवाए लगे घाव ऐसे के भर भी ना पाए दशानन इसी सोच में जागता है के जो हो रहा उसका परिणाम क्या है ये बाज़ी अभी तक ना जीती ना हारी यही रात अंतिम, यही रात भारी यही रात अंतिम, यही रात भारी हो भगवान मानव तो समझेगा इतना के मानव के जीवन में संघर्ष कितना विजय अंततः धर्म वीरों की होती पर इतना सहज भी नहीं है ये मोती बहुत हो चुकी युद्ध में व्यर्थ हानि पहुँच जाएँ परिणाम तक अब ये कहानी वचन पूर्ण हों, देवता हों सुखारी यही रात अंतिम यही रात भारी यही रात अंतिम यही रात भारी समर में सदा एक ही पक्ष जीता जयी होगी मंदोदरी या के सीता? किसी माँग से उसकी लाली मिटेगी कोई एक ही कल सुहागन रहेगी भला धर्मं से पाप कब तक लड़ेगा? या झुकना पड़ेगा या मिटना पड़ेगा विचारों में मंदोदरी है बेचारी यही रात अंतिम, यही रात भारी यही रात अंतिम, यही रात भारी ये एक रात मानो युगों से बड़ी है ये सीता के धीरज के अंतिम कड़ी है प्रतीक्षा का विष और कितना पिएगी? बिना प्राण के देह कैसे जिएगी? कहे राम, "राम, अब तो आ भी जाओ" दिखाओ दरस, अब ना इतना रुलाओ के रो-रो के मर जाए सीता तुम्हारी यही रात अंतिम, यही रात भारी यही रात अंतिम, यही रात भारी बस एक रात की अब कहानी है सारी यही रात अंतिम, यही रात भारी यही रात अंतिम, यही रात भारी

Written by: Ravindra JainLyrics © Divo TV Private Limited, Sony/ATV Music Publishing LLCLyrics Licensed & Provided by LyricFind

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