Khoon Ke Chhape

Raahi, Amitabh Bachchan

सुबह-सुबह उठकर क्‍या देखता हूँ कि मेरे द्वार पर खून-रँगे हाथों से कई छापे लगे हैं और मेरी पत्‍नी ने स्‍वप्‍न देखा है कि एक नर-कंकाल आधी रात को एक हाथ में खून की बाल्‍टी लिए आता है और दूसरा हाथ उसमें डुबोकर हमारे द्वार पर एक छापा लगाकर चला जाता है फिर एक दूसरा आता है फिर दूसरा, आता है फिर दूसरा, फिर दूसरा, फिर दूसरा... फिर यह बेगुनाह खून किनका है क्‍या उनका जो सदियों से सताए गए जगह-जगह से भगाए गए दुख सहने के इतने आदी हो गए कि विद्रोह के सारे भाव ही खो गए और जब मौत के मुँह में जाने का हुक्‍म हुआ निर्विरोध, चुपचाप चले गए और उसकी विषैली साँसों में घुटकर सदा के लिए सो गए उनके रक्‍त की छाप अगर लगनी थी तो किसके द्वार पर यह बेज़बान ख़ून किनका है क्या उनका जिन्‍होंने आत्‍माहन् शासन के शिकंजे की पकड़ से, जकड़ से छूटकर उठने का, उभरने का प्रयत्‍न किया था और उन्‍हें दबाकर, दलकर, कुचलकर पीस डाला गया है उनके रक्‍त की छाप अगर लगनी थी तो किसके द्वार पर यह जवान खून किनका है क्‍या उनका जो अपने माटी का गीत गाते अपनी आजादी का नारा लगाते हाथ उठाते, पाँव बढ़ाते आए थे पर अब ऐसी चट्टान से टकराकर अपना सिर फोड़ रहे हैं जो न टलती है, न हिलती है, न पिघलती है उनके रक्‍त की छाप अगर लगनी थी तो किसके द्वार पर

Written by: HARIVANSH RAI BACHCHAN, MURLI MAHOHAR SWARUPLyrics © Royalty NetworkLyrics Licensed & Provided by LyricFind

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