Banjaara

Mohammed Irfan

जिसे ज़िन्दगी ढूंढ रही है क्या ये वो मकाम मेरा है यहाँ चैन से बस रुक जाऊं क्यूं दिल ये मुझे कहता है जज़्बात नये से मिले हैं जाने क्या असर ये हुआ है इक आस मिली फिर मुझको जो क़ुबूल किसी ने किया है हां किसी शायर की ग़ज़ल जो दे रूह को सुकूं के पल कोई मुझको यूँ मिला है जैसे बंजारे को घर नए मौसम की सहर या सर्द में दोपहर कोई मुझको यूँ मिला है जैसे बंजारे को घर ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ आआआआआ जैसे कोई किनारा देता हो सहारा मुझे वो मिला किसी मोड़ पर कोई रात का तारा करता हो उजाला वैसे ही रोशन करे वो शहर दर्द मेरे वो भुला ही गया कुछ ऐसा असर हुआ जीना मुझे फिर से वो सीखा रहा हम्म जैसे बारिश कर दे तर या मरहम दर्द पर कोई मुझको यूँ मिला है जैसे बंजारे को घर नए मौसम की सहर या सर्द में दोपहर कोई मुझको यूँ मिला है जैसे बंजारे को घर मुस्काता ये चेहरा देता है जो पहरा जाने छुपाता क्या दिल का समंदर औरों को तो हरदम साया देता है वो धूप में है खड़ा खुद मगर चोट लगी है उसे फिर क्यूं महसूस मुझे हो रहा दिल तू बता दे क्या है इरादा तेरा मैं परिंदा बेसबार था उड़ा जो दरबदर कोई मुझको यूँ मिला है जैसे बंजारे को घर नए मौसम की सहर या सर्द में दोपहर कोई मुझको यूँ मिला है जैसे बंजारे को घर जैसे बंजारे को घर (हो) जैसे बंजारे को घर (हो) जैसे बंजारे को घर

Written by: MithoonLyrics © Universal Music Publishing GroupLyrics Licensed & Provided by LyricFind

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