Mere Saamne Wali

Danvendra Arya, करन नवनि

बरसात भी आकर चली गई बादल भी गरज कर बरस गये पर उसकी एक झलक को हम ऐ हुस्न के मालिक तरस गये कब प्यास बुझेगी आँखों की दिन-रात ये दुखड़ा रहता है मेरे सामने वाली खिड़की में एक चांद का टुकड़ा रहता है अफ़सोस ये है के वो हमसे कुछ उखड़ा-उखड़ा रहता है मेरे सामने वाली खिड़की में एक चांद का टुकड़ा रहता है। जिस रोज़ से देखा है उसको हम शमां जलाना भूल गये दिल थाम के ऐसे बैठे हैं कहीं आना-जाना भूल गये अब आठ पहर इन आँखों में वो चंचल मुखड़ा रेहता है मेरे सामने वाली खिड़की में एक चांद का टुकड़ा रहता है अफ़सोस ये है के वो हमसे कुछ उखड़ा-उखड़ा रहता है

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