Siyah Tara

Kailash Kher

जब भी मैं ख्वाबों में होता हूँ सब को हैं लगता मैं सोता हूँ होता हूँ सब से जो मैं जुडाह उसकी पनाहों में होता हूँ दुनिया में जो भी अलग है लगता क्यूँ सबको ग़लत है शिद्दत से गाढ़ी है ज़िद मेरी पर वो भी मुद्दत तलाक़ है सबकी नज़र में कमज़ोर हूँ सबकी नज़र में कुच्छ और हूँ माना भी मनाम भी मुझ में च्छूपा हूँ पहचान भी सियाह तारा सियाह तारा सियाह तारा सियाह तारा सियाह तारा सियाह तारा हो जब से मैं कब डोर जाता हूँ खुद ही दिल पाना दुखाता हूँ बर्फ़ीले धूप ले हाथ में लेके फिर चाँद को भी जलता हूँ सब की नज़र में कमजोर हूँ सबकी नज़र में कुच्छ और हूँ माना भी मनाम भी मुझ में च्छूपा हूँ पहचान भी सियाह तारा सियाह तारा सियाह तारा सियाह तारा सियाह तारा सियाह तारा सियाह तारा सियाह तारा सियाह तारा सियाह तारा

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