Raat Aankhon Mein Dhali

Jagjit Singh

रात आँखों में ढली पलकों पे जुगनूँ आए रात आँखों में ढली पलकों पे जुगनूँ आए हम हवाओं की तरह जाके उसे छू आए रात आँखों में ढली पलकों पे जुगनूँ आए बस गई है मेरे अहसास में ये कैसी महक बस गई है मेरे अहसास में ये कैसी महक कोई ख़ुशबू मैं लगाऊँ तेरी ख़ुशबू आए हम हवाओं की तरह जाके उसे छू आए रात आँखों में ढली पलकों पे जुगनूँ आए उसने छू कर मुझे पत्थर से फिर इंसान किया उसने छू कर मुझे पत्थर से फिर इंसान किया मुद्दतों बाद मेरी आँखों में आँसू आए रात आँखों में ढली पलकों पे जुगनूँ आए मैंने दिन रात ख़ुदा से ये दुआ माँगी थी मैंने दिन रात ख़ुदा से ये दुआ माँगी थी कोई आहट ना हो दर पर मेरे जब तू आए कोई आहट ना हो दर पर मेरे जब तू आए हम हवाओं की तरह जाके उसे छू आए रात आँखों में ढली पलकों पे जुगनूँ आए

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