Nazmein

Saurabh Dixit, Mark K Robin, Gulzar

मेरा एक खवाब था नज्मे मेरी उजाले देखे सुबहे के मगर ये जिंदगी की शाम में ये जानकर जो नज्मे मेरी रगो ऊर्जा में बहती थी तुम्हारी उँगलियों पर अब तरने लगी हे तसल्ली हो गयी हे में जाते जाते क्या देता तुम्हे सिवाय अल्फाज के मगर इतनी सी खवाइश हे के मेरे बाद भी पिरोते रहना तुम अल्फाज की लड़ियाँ हमारी अपनी नज्मो में

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