Kitaab

Happy Pills, Dikshant, Gravero

उस नयी किताब के पन्नो सा तू लगता ना है पढ़ी महेक रही हो पर नज़रों से गुज़रा तू चल के मेरे आहिस्ता आखो ने ना रख दी हो कुछ कसर दो जहाँ के ये बाते है ज़रूरी भी राते पर समझने को वक़्त ना यहा क्या है ऐसा तेरे किनारे पे क्यू रहती है आके लहरे वाहा प्यार की जब करता हू मैं बाते बालो के इतराना पे रुकता समा दो जहाँ के ये बाते है ज़रूरी भी राते पर समझने को वक़्त ना यहा

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