Subah Subah
Bhupinder Singh
सुबह सुबह इक खाब की
दस्तक पर दरवाजा खोला
देखा सरहद के उस पार से
कुच्छ मेहमान आए हैं
आँखों से मायूस सारे
चेहरे सारे सुने सुनाए
पाँव धोए हाथ धुलाए
आँगन में आसन लगवाए
और तंदूर पे मक्की के
कुच्छ मोटे मोटे रोट पकाए
पोटली में मेहमान मेरे
पिच्छाले सालों की फसलों का
ग़ूढ लाए थे
आँख खुली तो देखा
घर में कोई नही था
आँख लगाकर देखा तो
तंदूर अभी तक बुझा नही था
और होंटो पर मीठे ग़ूढ का
ज़ायक़ा अब्ब तक चिपक रहा था
खाब था शायद खाब ही होगा
सरहद पर कल रात सुना था
एक चली थी गोली
सरहद पर कल रात सुना है
कुच्छ खाबों का खून हुवा है
सुबह सुबह, सुबह सुबह
सुबह सुबह इक खाब की
दस्तक पर दरवाजा खोला
सुबह सुबह
सुबह सुबह इक खाब की
दस्तक पर दरवाजा खोला
देखा सरहद के उस पार से
कुच्छ मेहमान आए हैं
आँखों से मायूस सारे
चेहरे सारे सुने सुनाए
सुबह सुबह, सुबह सुबह
पाँव धोए हाथ धुलाए
आँगन में आसन लगवाए
और तंदूर पे मक्की के
कुच्छ मोटे मोटे रोट पकाए
पोटली में मेहमान मेरे
पिच्छाले सालों की फसलों का
ग़ूढ लाए थे
सुबह सुबह, सुबह सुबह
आँख खुली तो देखा
घर में कोई नही था
आँख लगाकर देखा तो
तंदूर अभी तक बुझा नही था
और होंटो पर मीठे ग़ूढ का
ज़ायक़ा अब्ब तक चिपक रहा था
खाब था शायद खाब ही होगा
सरहद पर कल रात सुना है
चली थी गोली
सरहद पर कल रात सुना है
कुच्छ खाबों का खून हुवा है
सुबह सुबह, सुबह सुबह
सुबह सुबह, सुबह सुबह
सुबह सुबह
सुबह सुबह
Written by: ABHISHEK RAY, BHUPINDER SINGH, GULZAR, SINGH BHUPINDER (GB - CNTRY), SINGH MITALILyrics © Royalty NetworkLyrics Licensed & Provided by LyricFind
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