Dil Dhundta Hain

Bhupinder Singh, Sachin Gupta

दिल ढूँढता है फिर वही फ़ुरसत के रात दिन दिल ढूँढता है फिर वही फ़ुरसत के रात दिन बैठे रहे तसव्वुर ए जानाँ किये हुए दिल ढूँढता है फिर वही फ़ुरसत के रात दिन. दिल ढूँढता है फिर वही जाड़ों की नर्म धूप और आँगन में लेट कर जाड़ों की नर्म धूप और आँगन में लेट कर आँखों पे खींचकर तेरे आँचल के साए को आँखों पे खींचकर तेरे आँचल के साए को औंधे पड़े रहे कभी करवट लिये हुए दिल ढूँढता है फिर वही फ़ुरसत के रात दिन दिल ढूँढता है फिर वही या गरमियों की रात जो पुरवाईयाँ चलें या गरमियों की रात जो पुरवाईयाँ चलें ठंडी सफ़ेद चादरों पे जागें देर तक ठंडी सफ़ेद चादरों पे जागें देर तक तारों को देखते रहें छत पर पड़े हुए दिल ढूँढता है फिर वही फ़ुरसत के रात दिन बैठे रहे तसव्वुर ए जानाँ किये हुए दिल ढूँढता है फिर वही फ़ुरसत के रात दिन दिल ढूँढता है फिर वही

Written by: Gulzar, Madan MohanLyrics © Royalty NetworkLyrics Licensed & Provided by LyricFind

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