Kahi Door Jab Din Dhal

Gourov Dasgupta, Ambili Menon, Sachin Gupta

कहीं दूर जब दिन ढल जाए साँझ की दुल्हन बदन चुराए चुपके से आए कहीं दूर जब दिन ढल जाए साँझ की दुल्हन बदन चुराए चुपके से आए मेरे ख़यालों के आँगन में कोई सपनों के दीप जलाए दीप जलाए कहीं दूर जब दिन ढल जाए साँझ की दुल्हन बदन चुराए चुपके से आए कभी यूँहीं जब हुईं बोझल साँसें भर आई बैठे बैठे जब यूँ ही आँखें कभी यूँहीं जब हुईं बोझल साँसें भर आई बैठे बैठे जब यूँ ही आँखें तभी मचल के प्यार से चल के छुए कोई मुझे पर नज़र न आए नज़र न आए कहीं दूर जब दिन ढल जाए साँझ की दुल्हन बदन चुराए चुपके से आए ,चुपके से आए

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