Mann Beqaid Huva

Sonu Nigam

मिटटी जिस्म की गीली हो चली मिटटी जिस्म की खुश्बू इसकी रूह तक घुली खुश्बू इसकी इक लम्हा बनके आया है इक लम्हा बनके आया है संग ज़ख़्मों का वैध मन बेक़ैद हुवा मन बेक़ैद मन बेक़ैद हुवा मन बेक़ैद रफ्ता रफ्ता मुश्किलें अपने आप खो रही इत्मीनान से काश्मकश कही जाके सो रही दस्तक देने लगी हवा अब चटानों पे ज़िंदा हो तोह किसका बस है अरमानों पे कोई सेहरा बांधे आया है साध ज़ख़्मों का वैध मन बेक़ैद हुवा मन बेक़ैद मन बेक़ैद हुवा मन बेक़ैद अब तलक जो थे दबें राज़ वो खुल रहे दरमियान की फसलें इक रंग में घुल रहे दो साँसों से जली जो लौ अब वो खफ्फी है मेरी भीतर कुछ न रहा पर तू बाकि है इक कतरा बनके आया है साध ज़ख़्मों का वैध मन बेक़ैद हुवा मन बेक़ैद मन बेक़ैद हुवा मन बेक़ैद

Written by: Lyrics © RALEIGH MUSIC PUBLISHINGLyrics Licensed & Provided by LyricFind

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