Dhan Dhan Dharti

Sonu Nigam, Shankar Mahadeva

बूढ़ा आसमां, धरती देखे रे धन है धरती रे, धन-धन धरती रे वो बहता है तो ये धरती सहती है पीठ पे देह लेकर गंगा बहती है वो बहता है तो ये धरती सहती है पीठ पे देह लेकर गंगा बहती है तारे गिरे हैं कितने धरती सूरज बुझे हैं कितने ओ धरती रे धन धरती रे धन धन धन धरती रे बँटवारे हो तो ये धरती कटती है सूखा पड़ता है तो धरती फटती है एक पल जीती रे, एक पल मरती रे धन है धरती रे, धन-धन धरती रे कोई तो धोये ये दाग ज़मीं के फिर से हरे हो जाएँ बाग़ जमीं के ये सोच के हर दिन हर रात ओंस उतरती रे ओ धरती रे धन बूढ़ा आसमां (धरती रे)

Written by: GULZAR, WAYNE SHARPELyrics © Sony/ATV Music Publishing LLCLyrics Licensed & Provided by LyricFind

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