Roj Raaton Ke Parde Gira Kar

Kavita Krishnamurthy, Shabbir Kumar

रोज रातो के परदे गिरा कर रोज रातो के परदे गिरा कर जागु मैं तेरी तस्वीर लेके के मैं देखूं तुझे जब भी चाहु दूसरा और कोई ना देखे रोज रातो के परदे गिरा कर मैंने माना की बिजली नहीं तू ना तू सूरज सा किरणे लुटाये आदमी हैं मगर फिर भी तुझको आदमी हैं मगर फिर भी तुझको कोई देखे तो देखा ना जाये कोई तुझको चुरा ले ना मुझसे जागु मैं तेरी तस्वीर लेके रोज रातो के परदे गिरा कर जब भी काजल लगाती हूँ जानम नाम तेरा ही लिखती हूँ दिल पे जब भी काजल लगाती हूँ जानम नाम तेरा ही लिखती हूँ दिल पे हा लट सवारू तो ये पूछती हैं कब मैं बिखरुंगी साजन से मिलके अब तो आजा कही से तू आजा जागु मै तेरी तस्वीर लेके रोज रातो के परदे गिरा कर कल तलक मैंने राते गुजारी मेहजबीनो की बाहों के नीचे दिन को भटका किया डाली डाली हर कली और हर गुल के पीछे अब तेरा सिर्फ तेरा दीवाना जागु मैं तेरी तस्वीर लेके रोज रातो के परदे गिरा कर जागु मैं तेरी तस्वीर लेके के मैं देखूं तुझे जब भी चाहु दूसरा और कोई ना देखे रोज रातो के परदे गिरा कर (रोज रातो के परदे गिरा कर) रोज रातो के परदे गिरा कर (रोज रातो के परदे गिरा कर)

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