Sharminda Hoon
A.R. Rahman, मधुश्री
मैं एक लहर हूँ जो समय की नदी से
बस तुमसे मिलने किनारे थी आई
मगर जो भी हो हर एक लहर को
मिट जाना है नदी में ही जा के
तुमको मैंने चाहा भी है
तुम्हीं को मैंने ग़म भी दिए
शर्मिंदा हूँ, शर्मिंदा हूँ शर्मिंदा हूँ
तुमको मैंने चाहा भी है
तुम्हीं को मैंने ग़म भी दिए
शर्मिंदा हूँ शर्मिंदा हूँ शर्मिंदा हूँ
सच कहती हूँ दिल ही दिल में शर्मिंदा हूँ
दुनिया जो चाहे कह ले
पर तुझको मिलने से पहले
ख़ुद से भी ना मिल सका था मैं
खोया सा था मैं उलझा सा था
कि तुझ बिन मेरी ना थी खोई राहें
मेरी ज़िन्दगी तुझ बिन थी जैसे
ओस की बुँदें पत्ती से अब गिरी अब गिरी
ओ ओस की बुँदें पत्ती से अब गिरी अब गिरी
मैं अगर साँस थी, तुम खुशबु थे
कैसे-कैसे पल पल जादू के
तुम्हें ऐसे खो के अकेली मैं ज़िंदा हूँ क्या
कागज़ था मैं हवा में उड़ता
तूने मुझ पर जाने क्या लिख दिया
मुझको अब तो नए शब्द हैं मिल गए
हैं शब्द ये प्यार के
तुमको मैंने चाहा भी है
तुम्हीं को मैंने ग़म भी दिए
शर्मिंदा हूँ शर्मिंदा हूँ
सच कहती हूँ दिल ही दिल में शर्मिंदा हूँ
सितारों से आगे जहां और भी है
अभी इश्क के इम्तिहाँ और भी है, और भी है
तू शाहीन है परवाज़ है काम तेरा तेरे सामने
आसमान और भी है सितारों से आगे जहां और भी है
तुम हो सच कि हो कोई परछाई
क्या तुम एक ख़्वाब हो जो कहीं नहीं
भीगी है पलकें मेरी तकिये हैं मेरे नम
तुम ही बताओ मुझको कैसे भुलाऊँ ये गम
तुमको मैंने चाहा भी है
तुम्हीं को मैंने ग़म भी दिए
शर्मिंदा हूँ शर्मिंदा हूँ शर्मिंदा हूँ शर्मिंदा हूँ
दुनिया जो चाहे कह ले
पर तुझको मिलने से पहले
ख़ुद से भी ना मिल सका था मैं
खोया सा था मैं उलझा सा था
कि तुझ बिन मेरी ना थी खोई राहें
मेरी ज़िन्दगी तुझ बिन थी जैसे
ओस की बुँदें पत्ती से अब गिरी अब गिरी
मेरी ज़िन्दगी तुझ बिन थी जैसे
ओस की बुँदें पत्ती से अब गिरी अब गिरी
ओ ओस की बुँदें पत्ती से अब गिरी अब गिरी
Written by: Lyrics Licensed & Provided by LyricFind
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